The Hindi poetry Diaries
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झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।३३।
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
अधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।९०।
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
मिले न, पर, click here ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते
मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
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